रविवार, 13 मार्च 2011

बुद्धिमान बालक

किसी नगर में रहनेवाला एक धनिक लम्बी तीर्थयात्रा पर जा रहा था। उसने नगर के सभी लोगों को यात्रा की पूर्वरात्रि में भोजन पर आमंत्रित किया। सैंकडों लोग खाने पर आए। मेहमानों को मछली और मेमनों का मांस परोसा गया। भोज की समाप्ति पर धनिक सभी लोगों को विदाई भाषण देने के लिए खड़ा हुआ। अन्य बातों के साथ-साथ उसने यह भी कहा – “परमात्मा कितना कृपालु है कि उसने मनुष्यों के खाने के लिए स्वादिष्ट मछलियाँ और पशुओं को जन्म दिया है”। सभी उपस्थितों ने धनिक की बात में हामी भरी।

भोज में एक बारह साल का लड़का भी था। उसने कहा –“आप ग़लत कह रहे हैं।”
लड़के की बात सुनकर धनिक आश्चर्यचकित हुआ। वह बोला – “तुम क्या कहना चाहते हो?”

लड़का बोला – “मछलियाँ और मेमने एवं पृथ्वी पर रहनेवाले सभी जीव-जंतु मनुष्यों की तरह पैदा होते हैं और मनुष्यों की तरह उनकी मृत्यु होती है। कोई भी प्राणी किसी अन्य प्राणी से अधिक श्रेष्ठ और महत्वपूर्ण नहीं है। सभी प्राणियों में बस यही अन्तर है कि अधिक शक्तिशाली और बुद्धिमान प्राणी अपने से कम शक्तिशाली और बुद्धिमान प्राणियों को खा सकते हैं। यह कहना ग़लत है कि ईश्वर ने मछलियों और मेमनों को हमारे लाभ के लिए बनाया है, बात सिर्फ़ इतनी है कि हम इतने ताक़तवर और चालक हैं कि उन्हें पकड़ कर मार सकें। मच्छर और पिस्सू हमारा खून पीते हैं तथा शेर और भेड़िये हमारा शिकार कर सकते हैं, तो क्या ईश्वर ने हमें उनके लाभ के लिए बनाया है?”

च्वांग-त्ज़ु भी वहां पर मेहमानों के बीच में बैठा हुआ था। वह उठा और उसने लड़के की बात पर ताली बजाई। उसने कहा – “इस एक बालक में हज़ार प्रौढों जितना ज्ञान है।”
लेखक - निशांत मिश्र 
Posted on मार्च 13, 2011 by Nishant 
‘निशांत का हिंदीज़ेन ब्लॉग’ से साभार

8 टिप्‍पणियां:

  1. मेरी पोस्ट को यहाँ स्थान देने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, सुज्ञ जी.
    यह स्पष्ट करना भी आवश्यक है कि मेरे ब्लौग की अधिकांश पोस्टों की भांति यह भी एक अंग्रेजी कथा का अनुवाद है. मेरी भूमिका केवल इसके प्रस्तुतीकरण तक सीमित है.
    जहाँ तक मांसाहार-शाकाहार के विषय का प्रश्न है, मैंने आज ही श्री विचार शून्य के ब्लौग पर एक कमेन्ट में कहा था कि मैं अब इन मामलों पर तर्क-कुतर्क में नहीं पड़ता क्योंकि जिसे मांस खाना है वह खायेगा ही.
    यह सिद्ध है कि शाकाहार ही मानव शरीर और प्रकृति के भले के लिए सर्वश्रेष्ठ है. मैं तो शाकाहार से भी एक कदम आगे 'अहिंसक जीवन' शैली युक्त जीवन जीने का हिमायती हूँ.

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  2. सुंदर और तर्कपूर्ण प्रस्तुति .वास्तव में मानव के पास मन है जिसके द्वारा वह सह अनुभूति की सामर्थ्य रखता है.शाकाहार या 'अहिंसक जीवन शैली' मन की सह अनुभति का ही तो परिणाम है.अच्छी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई.

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  3. बालक की कमाल की हाजिरजवाबी!!

    धनिक में तनिक भी इतनी समझ नहीं कि वह तर्क से अपनी बात सिद्ध कर पाये. फिर भी उसे अर्जित धन के कारण सम्मान मिलता है उससे उपदेश लेने को भीड़ उतावली रहती है. उसके कहे में हामी भरती है.
    इन 'धनिक-उपदेशकों' के कारण ही खोखले तर्क चलन में आ जाते हैं. च्वांग-त्ज़ु जैसे श्रोताओं को ऐसे बुद्धिमान बालकों का हौसला जरूर बढ़ाना चाहिए. निशांत जी को इस प्रेरक कथा के लिये .... धन्यवाद देता हूँ.

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  4. विचार शून्य वाले श्री दीप पाण्डेय जी ने अपने ब्लॉग पर लिखा- "मांसाहार एक प्रकार की आहार वैश्यावृति है"
    और हम देख रहे हैं ऐसी विचारधाराएं आहार से'काम'का प्रलोभन देकर व्याभिचार को न्योतती है।

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  5. सच में हर जीव को जीने का पूरा अधिकार है ,सार्थक लेख

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  6. यह लघु कथा मनुष्य के स्वार्थी दोगलेपन को रेखांकित करती है।
    स्वाद लोलुपता उसकी और नाम परमात्मा का!!

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  7. भारत की सास्कुती ये नही कहीती की वो मास खाए

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  8. ऐसे बुद्धिमान बालकों की ज़रूरत सारी दुनिया को है।

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